Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha in Hindi: पुत्रदा एकादशी व्रत कथा और पूजा का संपूर्ण फल

आज 21st जनवरी को पौष के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी है इसी के उप्लक्ष में आज हम आपको Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha बताते हैं ताकि इस व्रत और पूजा का आपको संपूर्ण फल मिले।

एक समय की बात है, “भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- राजन्! पौष के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी है, उसे बतलाता हूं सुनो। महाराज! संसार के हित की इच्छा से मैं इसका वर्णन करता हूं। राजन्! पूर्वोक्त विधि से ही यत्‍नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिए। इसका नाम Putrada Ekadashi है। यह सब पापों को हरने वाली उत्‍तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान् नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। चराचर गणियों सहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है।

Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha:

पूर्वकाल की बात है, भद्रावती पुरी में राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिंता और शोक में डूबे रहते थे। राजा के पित्र उनके दिए हुए जल को बड़े ही शोक और निराशा के साथ पीते थे और सोचते थे, कि राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा’ यह सोच-सोचकर पितृ दुःखी रहते थे।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गए। पुरोहित आदि किसी को भी इस बात का पता न था। मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन वन में राजा भ्रमण करने लगे। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनाई पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की। जहां-तहां रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे।

इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गया। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोज में इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे। शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा तो उस समय शुभ की सूचना देने वाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था।

सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेद-पाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गए और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। ये मुनि उत्तम व्रत का पालन करने वाले थे। तब राजा ने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न है।’

राजा अपनी जिज्ञासा को रोक नहीं पाए और बोले- आप लोग कौन हैं? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहां एकत्रित हुए हैं?

मुनि बोले- राजन् ! हम लोग विश्वेदेव है, यहां स्रान के लिए आए हैं। माघ निकट आया है। आज से पांचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जाएगा। आज ही Putrada Ekadashi है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है।

राजा ने कहा – विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्‍न हैं तो मुझे पुत्र की लालसा है कृपया मेरा मार्ग दर्शन कीजिए। मुनि बोले- राजन् ! आज Putrada Ekadashi है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। महाराज! भगवान् केशव के प्रसाद से तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा। इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक Putrada Ekadashi का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आए। तदनन्तर रानी ने गर्भ धारण किया।

प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया। वह प्रजा का पालक हुआ। इसलिए राजन्! पुत्रदा एकादशी का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात स्वर्गगामी होते है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है!

निष्कर्ष

तो ये थी Paush Putrada Ekadashi Vrat की कथा और महत्वता। पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है। जैसा की हमने ऊपर बताई गयी कथा में पढ़ा यह व्रत पुरुषो को रखना चाहिए और यह कथा जरूर पढ़नी चाहिए तभी आपको संपूर्ण फल प्राप्त होगा।

ऐसी दिलचस्प जानकारियों के लिए KoVo यानि Kota Vocal को Instagram और Facebook पर follow करें।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.